1920 में छत्तीसगढ़ का प्रथम मजदूर आंदोलन एवं ठा.प्यारेलाल सिंह

 

डॉ. डी. एन. खुटे

सहायक प्राध्यापक, इतिहास अध्ययनषाला, पं.रविषंकर शुक्ल वि.वि., रायपुर (..)

*Corresponding Author E-mail:

 

ABSTRACT:

राजनांदगांॅव छत्तीसगढ़ को छोटा सा शहर है, किन्तु राजनीतिक चेतना के दृष्टिकोण से सदैव अग्रणी रहा हैं। मजदूरो में दिन-प्रतिदिन असंतोष बढ़ता जा रहा था। परिणामस्वरूप  ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने मजदूरों तथा महिला मजदूरों को जागृत और संगठित करने का काम आरंभ किया। मजदूरों में राजनीतिक तौर पर सन् 1919 में पहली बार चेतना जागृत हुई जब रौलेट एक्ट के विरोध में राजनांदगॉंव शहर तथा मिल बंद रही। पुनः बालगंगाधर तिलक की मृत्यु पर बंगाल-नागपुर-कॉटन मिल के मजदूरों ने दो दिन काम बंद रखा।  नवम्बर 1917 से ठाकुर प्यारेलाल सिंह मजदूर आंदोलन से जुड़ गये थे इसी वर्ष ठाकुर साहब की मुलाकात कुछ मिल मजदूरों से हुई। अपने स्वभाव के अनुसार मजदूरों से हालचाल पूछा तब मजदूरों ने अपने साथ हो रहे अत्याचारो शोषण के बारे में बताया कि उनकों 12 घण्टे रोजाना काम करवाने के बाद भी सही मायने में पर्याप्त मजदूरी नही मिलती। मजदूरों की  परेशानियों को सुनकर ठाकुर साहब ने मजदूरो के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए दृढ़ संकल्पित हो गये।

 

KEYWORDS: रौलेट एक्ट, बंगाल-नागपुर-कॉटन मिल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, रियासत, स्वदेशी आंदोलन, सरस्वती पुस्तकालय, पोलिटिकल एजेन्ट, बिसिनियोसिस, हड़ताल, सुपरिटेण्डेन्ट।

 

 


INTRODUCTION:

ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसम्बर 1891 को राजनंादगांव के ग्राम दैहान में क्षत्रिय कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर दीनदयाल सिंह और उनकी माता का नाम श्रीमती नर्मदा देवी था। पिता ठाकुर दीनदयाल सिंह का रहन-सहन काफी शानो-शौकत वाले थे किन्तु वे भी अत्यन्त सरल तथा स्नेही स्वभाव के थे। ठाकुर साहब पर उनकी पिता की गहरी छाप पड़ी थी। उनके पिता तात्कालिन कवर्धा, राजनंादगांव छुईखदान रियासती स्कूलों के उपनिरीक्षक थे।1

 

ठाकुर प्यारेलाल सिंह का बचपन राजनांदगॉंव और दैहान मंे व्यतीत हुआ। उनकी प्रारंभिक श्क्षिा राजनांदगांव में हुई तथा माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे 1905 में रायपुर गर्वन्मेन्ट हाई स्कूल में भर्ती हो गये। हिस्लाप महाविद्यालय नागपुर से उन्होंने बी .. और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एल. एल. बी. की उपाधि प्राप्त की तथा उन्हें राजनांदगांव के पहले विधि स्नातक होने का गौरव प्राप्त हैं। सन् 1916 में ही ठाकुर साहब ने दुर्ग में वकालत प्रारंभ की इसके पीछे उनका उद्देश्य था -वकालत करते हुए स्वतंत्रता पूर्वक जन सेवा करना तथा राजनीति में सक्रिय होकर देश की स्वतंत्रता के लिए जनमत प्रबल करना।2 1907 में 16 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह गोमती से हुआ इनके चार पुत्र और दो पुत्रियॉं थी।3

 

ठाकुर साहब 15 वर्ष की अवस्था में ही राजनीति में भाग लेना प्रारंभ कर दिये थे। सन् 1906 से उन्होंने स्वदेशी आंदोलन के अंतर्गत स्वदेशी वस्त्रोें का उपयोग प्रचार का कार्य प्रारंभ किया। वे इस समय देश की बदलती हुई परिस्थितियों से भली-भांति परिचित हो चुके थे। राष्ट्रीय समस्याओं पर वे युवावस्था से ही मनन करने लगे थे और इसी अवस्था में उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए त्याग और तपस्या का मार्ग अपनाने का संकल्प लिया। राजनांदगांव में ठाकुर साहब, शिवलाल मास्टर और शंकर खरे ने खादी के प्रचार-प्रसार के लिये निरंतर प्रयास किये, तथा इससे स्वदेशी आंदोलन को बल मिला।4

 

20 अप्रैल 1909 ठाकुर साहब ने राजुलाल शर्मा, छबिलाल चौबे, सीताराम जी आदि की मदद से राजनांदगॉंव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। इस पुस्तकालय की स्थापना का राजनीतिक उद्देश्य जनता अधिक से अधिक समाचार पत्र, पत्रिकाओं को पढ़कर देश की समस्याओं में रूचि ले। इस प्रकार वे राजनांदगॉंव के जन-मानस को भावी आंदोलन के लिए तैयार करने में लगे हुए थे तथा जन आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ना चाहते थे।6

 

ठाकुर साहब पहले व्यक्ति थे जिन्होंने राजनांदगांॅव की जनता तथा मजदूरों में राष्ट्रीय और राजनीतिक चेतना का संचार किया। ठाकुर साहब जब तक राजनांदगांॅव में रहे तब तक सरस्वती पुस्तकालय राष्ट्रीय गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा। इसी कारण सन् 1928 में इस पुस्तकालय में तात्कालीन शासन ने ताला लगा दिया।7 सन् 1918 में ठाकुर साहब ने राजनांदगांॅव के दीवान की अत्याचारी नीति के विरोध में जन आंदोलन का नेतृत्व किया अतः दीवान को हटाया गया। इस घटना के बाद ठाकुर साहब लोकप्रिय हो गये।8  

 

ठाकुर साहब राजनांदगांॅव में वकालत करना चाहते थे लेकिन 1905 में विद्यार्थी आंदोलन की सफलता के कारण राजनांदगॉंव के दीवान कुतुबुद्दीन उनसे चिढ़े हुए थे, इसीलिए उन्हंे नांदगांॅव में वकालत करने की अनुमति नहीं दी गई। दीवान कहते थे- प्यारेलाल को हथेली पर रखना।9 दीवान का डर उचित प्रतीत होता है। ठाकुर साहब ने दुर्ग में वकालत प्रारंभ की। बी.एन.सी. मिल मजदूर आंदोलन के नेता होने के कारण उन्हें राजनांदगांॅव में रहना आवश्यक था। अतः उन्हें एक उपाय सूझा, उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और अंग्रेजी सरकार को पैसे की बड़ी जरूरत थी। ठाकुर साहब ने एक नाटक कम्पनी जो राजनादगांॅव में ठहरी थी से बातचीत कर एक रोज की आमदनी एक हजार रू. अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट मिस्टर एफ. एल. क्राफर्ड को दिला दिया। रूपये पाकर पोलिटिकल एजेन्ट साहब बहुत खुश हुए और उन्होंने ठाकुर साहब को राजनांदगांॅव में वकालत करने की अनुमति दे दी। ठाकुर साहब पैसों के लिए वकालत नहीं करना चाहते थे, वे वकालत के द्वारा राजनीति में सक्रिय होकर देश की स्वतंत्रता के लिए जनमत को प्रबल करना चाहते थे।10

 

26 दिसम्बर 1920 को नागपुर में विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। जिसमें महात्मा गॉंधी के असहयोग आंदोलन को पारित किया गया। इस अधिवेशन में ठाकुर साहब ने भाग लिया। इस अधिवेशन में सात कार्यक्रम तय किये गये थे जो इस प्रकार थे:-

1. सरकारी उपाधियों का त्याग 2. सरकारी लगान का भुगतान करना 3. अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार तथा राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना 4. स्वदेशी वस्तुओं का बहिष्कार 5. वकीलों द्वारा वकालत का त्याग 6. कौसिलों का वहिष्कार 7. मद्य निषेध का प्रचार।11

 

उपरोक्त कारणों के परिणामस्वरूप ठाकुर प्यारे लाल सिंह ने चार वर्षो के लिए वकालत छोड़ दी। जनता के मध्य घूम-घूम कर उन्होंने असहयोग आंदोलन की ज्वाला फैला दी। 1924 में जब असहयोग आंदोलन स्थगित हुआ, उसके बाद ठाकुर साहब ने पुनः वकालत का कार्य प्रारंभ किया।12

 

राजनांदगांॅव छत्तीसगढ़ को छोटा सा शहर है, किन्तु राजनीतिक चेतना के दृष्टिकोण से सदैव अग्रणी रहा हैं। मजदूरो में दिन-प्रतिदिन असंतोष बढ़ता जा रहा था। परिणामस्वरूप् ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने मजदूरों तथा महिला मजदूरों को जागृत और संगठित करने का काम आरंभ किया।13 मजदूरों में राजनीतिक तौर पर सन् 1919 में पहली बार चेतना जागृत हुई जब रौलेट एक्ट के विरोध में राजनांदगॉंव शहर तथा मिल बंद रही। पुनः बालगंगाधर तिलक की मृत्यु पर बंगाल-नागपुर-कॉटन मिल के मजदूरों ने दो दिन काम बंद रखा।14  नवम्बर 1917 से ठाकुर प्यारेलाल सिंह मजदूर आंदोलन से जुड़ गये थे इसी वर्ष ठाकुर साहब की मुलाकात कुछ मिल मजदूरों से हुई। अपने स्वभाव के अनुसार मजदूरों से हालचाल पूछा तब मजदूरों ने अपने साथ हो रहे अत्याचारो शोषण के बारे में बताया कि उनकों 12 घण्टे रोजाना काम करवाने के बाद भी सही मायने में पर्याप्त मजदूरी नही मिलती। मजदूरों की  परेशानियों को सुनकर ठाकुर साहब ने मजदूरो के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए दृढ़ संकल्पित हो गये।15

 

ठाकुर साहब किलापारा में रहते थे और कसेरपारा में उनका ऑफिस था। उनके अथक प्रयासों से एक संगठन तैयार हो गया था और यह सब कार्य गुप्त रूप से किया गया। अधिकारियांे को मजदूर संगठन के बारे मंे उस समय पता चला जब 1920 में ठाकुर साहब ने आंदोलन प्रारंभ किया। जिस स्थान पर भी कारखाने स्थापित होते है, वहॉं श्रम से संबंधित समस्याएं स्वमेव उत्पन्न हो जाती है। ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने भारत को अनेक फायदे पहंुचाये थे, परन्तु इससे नुकसान भी हुआ था, कि इसने मजदूरों की दीन दशा को और अधिक सोचनीय बना दिया। बी. एन. सी. मिल का संचालन अंग्रेज कम्पनी के हाथों में आने के बाद इसमें तरक्की होने लगी लेकिन असहाय मजदूर मिल-मालिक की इच्छानुसार कार्य करने को मजबूर थे। इस दशा मे मजदूरों में असंतोष की भावना का उत्पन्न होना स्वाभाविक था।

 

बी. एन .सी. मिल के मजदूरों से काम अधिक लिया जाता था। यहॉं तक मजदूरों को 12 से 13 घण्टे काम करना पड़ता था और उन्हंे कम मजदूरी देते थे। महिलाओं की स्थिति और भी अधिक गंभीर थी। उनसे 9 घण्टे कभी-कभी 11-12 घण्टे काम लियाा जाता था, इनमें से कुछ गर्भवती थी और कई महिलाएं दुध पीते बच्चों की माँ थी।16

 

मजदूरों के वेतन-भत्ते मिल-मालिकों की इच्छा पर निर्भर करता था। मजदूरों को वेतन इतना कम मिलता था कि उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं हो पाती थी। बी. एन. सी. मिल के मजदूरों का मूल वेतन 7 रू. था, लेकिन मजदूरों को गेट में ही 1 रू. दे दिया जाता था। उस समय रूपया शद्ध चांदी का होता था।17

 

बी.एन.सी. मिल के मजदूरों के द्वारा यह शिकायत मिलती थी कि उनका वेतन पूरा नहीं दिया गया। प्रत्येक पाली के अधिकांश मजदूरों को काम होने का बहाना कर घर भेज दिया जाता था और इस स्थिति में उन्हें मुआवजा भी नहीं देते थे जिससे मजदूर बेकार हो गये और उन्हें दो वक्त का भोजन मिलना कठिन हो गया।18

 

कपड़ा मिलों में भारी शोरगुल होता था, जिससे बहरा होने की संभावना अधिक थी। कारखानें में शटल की तेज आवाजें और मशीनों की गड़गड़ाहटे बहरा बनाने के लिए काफी जिम्मेदार है। मजदूरों ने इस समस्या के समाधान हेतु मांग की लेकिन कोई सुधार नही किया गया इस प्रकार ब्रिटिश अधिकारियों ने मजदूरों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया।19 बी. एन. सी. मिल के मजदूरों पर काम का भार लगातार बढ़ाया गया था। तेज गति से चलने वाली मशीनों के कारण यह भार और अधिक बढ़ गया साथ ही बहुत सारे मजदूरों को यह कहकर निकाल दिया गया कि जरूरत से ज्यादा मजदूर रखे गये है। इससे मजदूरों के अवकाश मंे कटौती हो गयी।20

 

भारत में कपड़ा मिलो को आज भी पसीने की दुकान’’ माना जाता है। अत्यधिक गर्मी और नमी के कारण केवल काम करने की क्षमता कम होती थी, बल्कि बीमारियां भी फैलती थी। रूई के रेशे फेफड़ो के अन्दर जाकर टी.बी. और बिसिनियोसिस नामक बीमारी पैदा करती है। रंगखाने में मिट्टी के तेल से निकलने वाली गैस से लोग त्रस्त रहते थे। मच्छरदानी के खाते में ग्रेफाईट के उपयोग से मुंह, गले में खुजलाहट रहती थी। कपड़ा मिल में उड़ने वाली रूई से श्वास संबंधित परेशानियांॅ होती थी।21

 

इस समय बी.एन.सी मिल के अंग्रेज मैनेजर द्वारा मजदूरों को दिनों-दिन तानाशाही तंग करने का प्रयास किया जा रहा था। मजदूरों को अवकाश नहीं मिलता था। एक दिन भी काम में जाने पर गैरहाजिरी लगाई जाती थी और दो दिन का पैसा जब्त कर लिया जाता था। बीमार मजदूरों के लिए मिल प्रबंधक का शक्त आदेश था कि दो दिन पहले ही दरखास्त देकर छुट्टी स्वीकृत कराना चाहिए नही ंतो काम से निकाल दिया जायेगा। प्रबंधक द्वारा मजदूरों से मनमाने ढंग से जुर्माना भी लिया जाता था।22 इसके अलावा मजदूरों को मारने की धमकी दी जाती थी। मिल मैनेजर मजदूरों के पेट को काटकर अपना पेट भरना चाहता था। मैनेजर का इतना आतंक था कि वह मजदूर को किसी भी क्षण बाहर निकाल सकता था। इस बात का प्रमाण सन् 1926 में 150 मजदूरों को मिल मैनेजर ने इसलिए निकाला कि ये लोग उनके व्यवहार से रूष्ट थे। यदि मजदूर मैनेजर के इस तानाशाह का विरोध करते तो प्रबंधक द्वारा उन्हंे गुण्ड़ो से पिटवाया जाता था।23

 

इस समय भारत में कपड़ा मिलों में हादसों का सिलसिला बढ़ता जा रहा था बी ़एन सी मिल में कृत्रिम तरीके से नमी पैदा की जाती थी, ताकि धागा टूटे। मजदूरों द्वारा हमेशा तापमान अधिक होने की शिकायत की जाती थी। अत्यधिक गर्मी के कारण श्रमिकों की कार्य क्षमता कम हो जाती थी और कभी-कभी बेहोश होकर गिर जाते थे। रंगखानें में पोलिमिराई जिंग मशीन के फटने से मजदूरों के मारे जाने की संभावना अधिक हो जाती थी। सुरक्षा के दृष्टिकोण से मजदूरों को जूता तक नहीं दिया जाता था धागा खत्म होने पर शटल से छिटककर बाहर जाता था, जिससे मजदूरों की ऑंखे शरीर में घुस जाने की प्रबल संभावना होती थी।24

 

राजनांदगॉंव छोटी सी रियासत थी, तथा देशी राज्य होने के कारण यहॉं के कारखानों में फैक्टरी एक्ट लागू नहीं हो सकता था, क्योंकि रियासत के राजा इस समय नाबालिक था। रियासत का प्रबंध पोलिटिकल एजेन्ट के अधीन एक सुपरीटेन्डेन्ट के हाथ में था और सुपरीटेन्डेन्ट हिन्दुस्तानी था, मिल के मालिक और प्रबंधक दोनों अंग्रेज थे, दोनो का प्रभाव था जिसके कारण राज्य का प्रबंध पोलिटिकल एजेन्ट के अधीान था।25

 

Ÿाीसगढ़ में मजदूर आंदोलन का बीजारोपण राजनांदगॉंव के बी ़एन ़सी मिल के मजदूरों ने किया। अप्रैल 1920 में ठाकुर प्यारे लाल सिंह के नेतृत्व में राजनांदगॉंव के बी ़एन ़सी मिल के मजदूरों ने देश के इतिहास में सबसे पहली और लंबी हड़ताल आरंभ की। ठाकुर साहब उस समय मजदूरों के अध्यक्ष थेें और शिवलाल जी उपाध्यक्ष थे राजुलाल शर्मा मंत्री थे।

मजदूरों की प्रमुख मॉंगे निम्नलिखित थी:-

1.     वेतन में वृद्धि की जाये।

2.     काम करने की स्थिति में सुधार की जाये।

3.     कार्य की अवधि आठ घण्टे निर्धारित की जाये।26

 

21 फरवरी 1920 में 2000 मजदूरांे ने हड़ताल कर दी। हड़तालियों को संबोधित करने के लिए नागपुर से नारायण राव वैद्य, देव महाशय तथा राजिम से पं ़सुन्दरलाल शर्मा भी राजनांदगॉंव पधारे थे। स्टेशन पर हड़तालियों ने बड़ी घूूमघाम से इनका स्वागत किया था। दूसरे दिन नगर में जुलूस निकाला गया। जुलूस के समय मजदूरों ने नारा लगाया -हमारा शोषण बंद करों, काम के घण्टे कम करो, हमारा वेतन पूरा दो, आदि।27

 

इस प्रकार के जुलूस को सुपरिटेण्डेन्ट साहब ने अनुचित घोषित किया इसके पहले पुलिस इंस्पेक्टर साहब ने अपना हुक्म सुना दिया था कि बिना आज्ञा के सार्वजनिक सभा नही होने दी जायेगी, तद्ानुसार पं. सुन्दरलाल शर्मा, राजुलाल शर्मा आदि ने इजाजत लेने के लिए सुपरिटेण्डेन्ट साहब से मुलाकात की। सुपरिटेण्डेन्ट साहब आदेशानुसार अपने-अपने घर पर 50-60 आदमी मिलकर सभा करने की अनुमति प्रदान की गई। परिणामस्वरूप राजुलाल शर्मा के मकान के पीछे ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने व्याख्यान दिया।28

 

हड़ताल को खत्म करने के लिए पुलिस इंसपेक्टर मजदूरों को डरा, धमका रहे थे। पोलिटिकल एजेंट मजदूरों को जबरदस्ती काम पर भेजने का प्रयास कर रहे थे। यह हड़ताल 37 दिनों तक ठाकुर साहब के नेतृत्व में सफलतापूर्वक चली। 38 वे दिन मिल अधिकारियों ने मजदूरों की सभी मॉंगे स्वीकार कर ली। कार्य के घण्टे कम किये गये, मजदूरी की दर बढ़ाई गई। मजदूरों की दशा सुधरी उनको सही दिषा मिली।29

 

राजनैतिक दृष्टि से यह हड़ताल महत्वपूर्ण थी क्योंकि उस समय विदेशी शासन का पूरे देश में बोल-बाला था और देशी नरेश ब्रिटिश राज भक्त थे। वहॉं संगठन करने तथा बोलने की स्वतंत्रता नहीं थी। राजनांदगॉंव के मिल का अंग्रेज प्रबंधक Ÿाीसगढ़ रियासतों के लिए बेताज बादशाह बन गया था, क्योंकि काले लोगों के राज्य में गोरा पोलिटिकल एजेंट होता था इन परिस्थिति के बावजूद सफलता प्राप्त करना आर्श्चयजनक बात थी। इस हड़ताल ने मजदूरों में एक नया जोश, नई चेतना का संचार किया। ठाकुर साहब की ख्याति सारी रियासत में फैल गई। ठाकुर साहब एक मात्र मजदूरों के नेता बन गये।30

 

ठाकुर साहब को मिल अधिकारी बाधा समझने लगे, क्योंकि इस मजदूर आंदोलन की सफलता ने राष्ट्रीय आंदोलन को प्रोत्साहित किया था, क्योंकि इससे पूर्व ठाकुर साहब ने स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया और इस आंदोलन का प्रचार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि मजदूर संघ के शिवलाल जी, मंत्री राजुलाल जी तथा ठाकुर प्यारेलाल सिंह को रियासत सुपरिटेन्डेन्ट के हस्ताक्षरों से एक नोटिस मिला था कि उक्त तीनों व्यक्ति 11 मार्च को दस बजे रायपुर में पोलिटिकल एजेंट साहब के समक्ष स्वंय उपस्थित होकर कारण बतलावे कि हड़ताल में उन्होंने क्यों भाग लिया अन्यथा उन्हें राजनांदगांॅव से निकाल दिया जायेगा। जिस बात का डर था वही हुआ। रायपुर के पोलिटिकल एजेंट मिस्टर क्राफर्ड ने मजदूर प्रतिनिधि राजुलाल, शिवलाल तथा ठाकुर प्यारेलाल सिंह को 13 तारीख को प्रातः काल 7 बजे तक राजनांदगांॅव से निकलने का शक्त हुक्म दिया था। उसके अनुसार 12 तारीख को ही उन लोगों ने यह रियासत छोड़ दी।31

 

इस निष्कासन के बारे में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने मध्यप्रदेश के गर्वनर-जनरल को एक पत्र लिखा स्पष्ट रूप से घोषणा की- मैं नहीं जानता कि प्रशासन से संबंधित आपके विचार क्या है किन्तु मेरे विचार में प्रशासन जनता की उन्नति, सुरक्षा और कल्याण के लिए होता है अगर इन उद्देश्यों की पूर्ति में शासन अक्षम सिद्ध होता है तो उसे संशोधित किया जाता या समाप्त कर दिया जाता है।32

 

इस निष्कासन आदेश की खबर नागपुर पहंुची उस समय वहांॅ प्रांतीय व्यवस्थापक काैंसिल की बैठक हो रही थी। उसमें उपस्थित समस्त प्रतिनिधियों ने अपने हस्ताक्षर से रियासत से निकालने की आज्ञा रद्द करने के लिए चीफ कमीशनर साहब के पास प्रार्थना पत्र भेजा। अन्ततः तात्कालीन गर्वनर सर फ्रेंकसाई ने राजनांदगांव रियासत के पोलिटिकल एजेंट मिस्टर एफ. एल. क्राफर्ड को इस आदेश को रद्द करने के लिए कहा एवं उन्हे ठाकुर प्यारेलाल सिंह से माफी भी मांॅगनी पड़ी। मांॅगे पूरी हो जाने पर अपने नेताओं के आदेशानुसार मजदूरों ने अप्रैल 1920 को काम करना पुनः शरू कर दिया था।33

 

इस आंदोलन के सफलता के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि इसमें योग्य और अनुभवी नेताअें ने भाग लिया। उनका उद्देश्य मजदूरों की समस्याओ का समाधान करना था। इस आंदोलन के नेतृत्व करने वाले प्रमुख नेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह, पं. राजूलाल शर्मा, राघोलालजी, डॉ. बंशीलाल, चुन्नीलाल नंदलाल सिंह, सीताराम साव के विचारो में समानता थी। इस आंदोलन के प्रणेेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह, बड़े दूरदर्शी थे, उनका एक निश्चित उद्देश्य मजदूरों के लिए काम के घण्टे निर्धारित करना उनके वेतन में वृद्धि करना था। उपरोक्त घटना से ठाकुर साहब के प्रति जनता और मजदूरों की श्रद्धा, विश्वास और भी प्रबल हो गया।

 

निष्कर्ष

राजनांदगॉंव रियासत के बी. एन. सी. मिल में मिल-मालिकों ने मजदूरांे के विरूद्ध शोषण की प्रक्रिया को अपनाया, जिसका मुँह तोड़ जवाब मजदूरों ने आंदोलन करके दिया। इस सम्पूर्ण घटना चक्र में ठाकुर प्यारेलाल सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण रही। यह आंदोलन धीरे-धीरे इतना विस्तृत हुआ कि छत्तीसगढ़ के मजदूर आंदोलन के इतिहास में ‘‘मील का पत्थर’’ साबित हुआ। बंगाल-नागपुर कॉटन मिल को संक्षिप्त में बी.एन.सी. मिल कहा जाने लगा। बी. एन. सी. मिल के मिल मलिकों के अत्याचारों के कारण मजदूरो में असंतोष की भवना बढती जा रही थी। बी. एन. सी. मिल में शुरूआती दौर में काम की एक पाली चलती थी लेकिन बाद में कम्पनी ने दो पाली चलायी। ये पालीयॉ 12-12 घण्टे की होती थी। सन् 1920 में 12 घण्टे की पाली के विरूद्ध ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में एक बडा मजदूर आंदोनल हुआ था। इस देश में यह मजदूरों का सबसे लम्बा आंदोलन था जो कि 37 दिनों तक चला जिसमें अंततः मजदूरों की जीत हुई।

 

इस आंदोलन की सफलता के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि इसमें योग्य और अनुभवी नेताओं ने भाग लिया उनका उद्देश्य मजदूरों की समस्याओं का समाधान करना था। इस आंदोलन के प्रणेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह, बड़े दूरदर्शी थे, उनका एक निश्चित उद्देश्य मजदूरों के लिए काम के घण्टे निर्धारित करना उनके वेतन में वृद्धि करना था। उपरोक्त घटना से ठाकुर साहब के प्रति जनता और मजदूरों की श्रद्धा, विश्वास और भी प्रबल हो गया। छत्तीसगढ़ के रियासत में होने वाले मजदूर आंदोलन का राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्तर पर अपना विशिष्ट महत्व है। मजदूर मिल-मालिकों के विरूद्ध अपने अधिकारों की लड़ाई लड़कर ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में मजदूरों ने अपनी जागरूकता का परिचय दिया।

 

संदर्भ सूचीः-

1-    ठाकुर, श्रीहरि, त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह,’’ आशीष प्रेस, रायपुर, 1955, पृ. 2-3

2-    छत्तीसगढ़ संदेश, 13-8-1947, अंक 25, पृ. 13

3-    वर्मा, भगवान सिंह छत्तीसगढ़ का इतिहास प्रारंभ से 2000 . तक’’ मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल, 2007, पृ. 87-97

4-    वर्मा, भगवान सिंह छत्तीसगढ़ का इतिहास प्रारंभ से 2000 . तक’’ मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल, 2007, पृ. 87-97

5-    एडमिनिस्ट्रेटिव रिपोर्ट ऑफ सी.पी. एंड बरार फॉर इयर्स 1882, पृ. 87-97

6-    छत्तीसगढ़ संदेश, पूर्वोक्त।

7-    उपरोक्त।

8-    ठाकुर, श्रीहरि पूर्वोक्त, पृ. 8-9

9-    नंादगांव संदेश, दिनांक 1-9-1946, अंक 26, पृ. 12

10-   छत्तीसगढ़ संदेश, पूर्वोक्त।

11-   एस. एल, नगोरी, ‘‘भारत का राष्ट्रीय आंदोलन’’, आर .बी.एस, पब्लिशर्स, जयपुर, 1983, पृ. 221

12-   मध्यप्रदेश संदेश, संतोष कुमार, शुक्ल, स्वाधीनता रजत जयंतिका विशेषांक (स्वतंत्रता रजत जयंतिका विशेषांक (स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ का योगदान), पृ. 53

13-   झा, प्रफुल्ल, ‘‘राजनीतिक चेतना का अंकुरण स्थल बी.एन.सी’’, बलराम प्रेस राजनांदगॉंव, 1973 पृ. 12

14-   बेहार,, रामकुमार ‘‘छत्तीसगढ़ी संस्कृति और विभूतिया’’, छत्तीसगढ़ शोध संस्थान रायपुर, 2003, पृ. 59

15-   कर्मवीर, माधवराव सप्रे संग्रहालय भोपाल, तारीख 20 मार्च 1920

16-   सायल राजेन्द्र कुमार,,‘राजनांदगांव मंे श्वेत आतंक’’, मजदूर संघ को कुचलने के लिए राज्यतंत्र द्वारा संगठित हिंसा पर एक अधूरी रिपोंर्ट, क्षेत्रीय सचिव लोक स्वतंत्रता संगठन .प्र, खण्ड-2, दिनांक 2-10-1984, रायपुर पृ. 3

17-   कर्मवीर, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान भोपाल, 28 फरवरी 1920

18-   राजनांदगांव रियासत के उद्योगों की समस्याएं’’, राजगामी संपदा से प्राप्त, 1909 से 1936 . तक।

19-   कर्मवीर, 28 फरवरी 1920, पूर्वोक्त।

20-   सायल राजेन्द्र कुमार,, ‘‘राजनांदगांव में श्वेत आतंक’’, पूर्वोक्त।

21-   कर्मवीर, 28 फरवरी 1920 पूर्वोक्त।

22-   धानुलाल, श्रीवास्तव, अष्टराज अम्भोज’’, रेजा प्रेस नरसिंहपुर मध्यप्रदेश, 1925 पृ. 68

23-   झा, प्रफुल्ल, राजनीतिक चेतना का अंकुरण स्थल बी.एन.सी. मिल्स’’, पूर्वोक्त, पृ. 25

24-   कर्मवीर, 28 फरवरी 1920, पूर्वोक्त।

25-   संकल्प, नागपुर शहार से प्रकाशित, अंक 42, तारीख 10 सितम्बर 1921, पृ. 5

26-   कर्मवीर, 20 अगस्त 1920

27-   ठाकुर, श्रीहरि, त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह’’ पूर्वोक्त, पृ. 13

28-   शुक्ला सुरेशचन्द्र,‘छत्तीसगढ़ की रियासतों का विलनीकरण’’, शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन, रायपुर, 2003, पृ. 76

29-   सिंह खड़गबहादूर,, ‘‘राजनांदगांव जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृति इतिहास (1741 से स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती तक)’’, कृष्णा प्रकाशन राजनांदगांॅव, 2004, पृ. 18

30-   शुक्ला सुरेशचन्द्र, एवं अर्चना शुक्ला, छत्तीसगढ़ का समंग्र इतिहास’’, शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन, रायपुर, 2003, पृ0 180

31-   वर्मा, भगवान सिंह, पूर्वोक्त, पृ. 76

32-   बी. एन. सी. मिल के मजदूर आंदोलन 1920 के संबंध में प्यारेलाल सिंह ठाकुर द्वारा मध्यप्रदेश गर्वनर जनरल सर फ्रेंकस्लाई को लिखा पत्र, पृ. 1-2 (सरस्वती पुस्कालय से प्राप्त)

33-   नैयर, रमेश, छत्तीसगढ़ के युग पुरूष त्यागमूर्ति प्यारेलाल सिंह ठाकुर ’’,श्ताक्ष़्ाी प्रकाशन रायपुर, 2006, पृ. 20

 

 

 

Received on 22.05.2023        Modified on 08.06.2023

Accepted on 26.06.2023        © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2023; 11(2):96-102.

DOI: 10.52711/2454-2687.2023.00014